Friday 31 March 2017

फूल देई ( Phool Dei )

  फूल संक्रांति ( रंगीलौ उत्तराखण्ड )



उत्तराखण्ड राज्य दुनिया भर में  देवभूमि   के नाम से जाना जाता है, इस सुरम्य प्रदेश की एक और खासियत यह है कि यहां के निवासी बहुत ही त्यौहार प्रेमी होते हैं। उत्तराखण्ड राज्य के पहाड़ी क्षेत्र अपनी विशिष्ट लोक परम्पराओं और त्यौहारों के लिये प्रसिद्ध हैं।  यहाँ प्रचलित कई ऐसे -त्यौहार हैं, जो सिर्फ इस राज्य में ही मनाये जाते हैं।  कृषि से सम्बन्धित त्यौहार हैं हरेला और फूलदेई। 


फूलदेई प्रकृति से जुड़ा पर्व है। हिन्दू परंपरा के अनुसार चैत्र माह से नए साल की शुरुआत होती है। उत्तराखण्ड में फूलदेई चैत महीने के प्रथम दिन मनाया जाता है, जो बसन्त ऋतु के स्वागत का त्यौहार है।

इस दिन छोटे बच्चे सुबह की पहली किरण के फूटते ही बच्चे आसपास के पेड़ों और जंगल से फूल जुटाकर लाने लगते हैं। चैत्र महीने के समय चारों ओर छाई हरियाली और नाना प्रकार के खिले फूल प्रकृति के यौवन में चार चांद लगाते हैं। बच्चे वहां से प्योली, बुरांस, बासिंग आदि जंगली फूलो के अलावा आडू, खुबानी, पुलम के फूलों को चुनकर लाते हैं और एक थाली या रिंगाल की टोकरी में चावल, हरे पत्ते, नारियल और इन फूलों को सजाकर गांव के हर घर में जाकर उनकी दहलीज पर फूल चढ़ाते हैं।  सबेरे से ही नन्हे-मुन्ने बच्चे सजधज कर घर-घर जाकर फूल देई-छम्मादेई के गीत गाते हैं और गूंज के साथ समूचा गाँव  बच्चों की मीठी किलकारियों से सुबह-सुबह गुंजायमान हो  उठता हैं और बच्चे लोकगीतों के द्धारा सुख-शांति की कामना करते हैं और देहरी का पूजन करते हुये गाते हैं-


फूल देई, छम्मा देई,देणी द्वार, भर भकार,ये देली स बारम्बार नमस्कार,फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई।






इसके बदले में उन्हें परिवार के लोग गुड़, चावल व रुपये देते हैं।  मेष संक्रांति कुमाऊं में फूल संक्रांति के नाम से भी जानी जाती है।  वहीं फूल संक्रान्ति के दिन बच्चों द्धारा  प्रकृति को इस अप्रतिम उपहार सौंपने के लिये धन्यवाद अदा करते हैं। दिन  में ढोल-दमाऊ बजाने वाले लोग जिन्हें बाजगी, औली या ढोली कहा जाता है। वे भी इस दिन गांव के हर घर के आंगन में आकर इन गीतों को गाते हैं। जिसके फलस्वरुप घर के मुखिया द्धारा
उनको चावल, आटा या अन्य कोई अनाज और दक्षिणा देकर विदा किया जाता है। इस दिन लोगों के घरों से मिले चावल से शाम को हलवा (चावे साई) भी बनाया जाता है,इस बनाकर आपस में बाटकर खाया  जाता है।

फूलदेई  के कुछ वीडियो निम्न है । कृप्या  इन वीडियो को देखकर लाइक करना ना भूले और हमारे यूट्यूब चैनल (YOU-TUBE CHANNEL) सब्सक्राइब (SUBSCRIBE ) करना ना भूले ।



गढ़वाल मण्डल में फूलदेई त्यौहार में बच्चो की कुछ झलकियां 


  


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#रंगीलौ उत्तराखंड #colorfuluttarakhand #rangilouttarakhand

Monday 20 March 2017

भिटौली ( Bhitauli Tradition )

  भिटौली ( रंगीलौ उत्तराखण्ड )

उत्तराखण्ड राज्य में कुमाऊं-गढवाल मण्डल के पहाड़ी क्षेत्र अपनी रंगीली लोक परम्पराओं और त्यौहारों के लिये शताब्दियों से प्रसिद्ध हैं।यहाँ प्रचलित कई ऐसे तीज-त्यौहार हैं जो केवल उत्तराखण्ड में ही मनाये जाते है।वही इसे बचाए रखने का बीड़ा उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र और यहाँ पर रहने वाले पहाड़ी लोगों ने उठाया है इन्होने आज भी अपनी परंपरा और रीति- रिवाजों को जिन्दा रखा है।

उत्तराखण्ड की ऐसी ही एक विशिष्ट परम्परा है “भिटौली”। उत्तराखण्ड में चैत का पूरा महीना भिटोली के महीने के तौर पर मनाया जाता है| स्व० गोपाल बाबू गोस्वामी जी के इस गाने मे भिटोला महीना के बारे मे वर्णन है. 

“बाटी लागी बारात चेली ,बैठ  डोली मे, 
बाबु की लाडली चेली,बैठ डोली मे 
तेरो बाजू भिटोयी आला, बैठ डोली मे ”

भिटौली का शाब्दिक अर्थ है – भेंट (मुलाकात) करना। प्रत्येक विवाहित लड़की के मायके वाले (भाई, माता-पिता या अन्य परिजन) चैत्र के महीने में उसके ससुराल जाकर विवाहिता से मुलाकात करते हैं।  इस अवसर पर वह अपनी लड़की के लिये घर में बने व्यंजन जैसे खजूर (आटे + दूध + घी + चीनी का मिश्रण), खीर, मिठाई, फल तथा वस्त्रादि लेकर जाते हैं। शादी के बाद की पहली भिटौली कन्या को वैशाख के महीने में दी जाती है और उसके पश्चात हर वर्ष चैत्र मास में दी जाती है।  लड़की चाहे कितने ही सम्पन्न परिवार में ब्याही गई हो उसे अपने मायके से आने वाली “भिटौली” का हर वर्ष बेसब्री से इन्तजार रहता है।  इस वार्षिक सौगात में उपहार स्वरूप दी जाने वाली वस्तुओं के साथ ही उसके साथ जुड़ी कई अदृश्य शुभकामनाएं, आशीर्वाद और ढेर सारा प्यार-दुलार विवाहिता तक पहुंच जाता है। 

पहाड़ों पर चैत के महीने में एक चिड़िया  घुई-घुई बोलती है। इसे घुघुती कहते हैं। घुघुती का उल्लेख पहाड़ी दंतकथाएं और लोक गीत में भी पाया जाता हैं।  विवाहित बहनों को चैत का महिना आते ही अपने मायके से आने वाली 'भिटौली' की सौगात का इंतजार रहने लगता है। इस इन्तजार को लोक गायकों ने लोक गीतों के माध्यम से भी व्यक्त किया है।

“न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मिकें मैत की”।


भिटौली प्रदेश की लोक संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इसके साथ कई दंतकथाएं और लोक गीत भी जुड़े हुए हैं। पहाड़ में चैत्र माह में यह लोकगीत काफी प्रचलित है । वहीं ‘भै भुखो-मैं सिती’ नाम की दंतकथा भी काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बहन अपने भाई के भिटौली लेकर आने के इंतजार में पहले बिना सोए उसका इंतजार करती रही। लेकिन जब देर से भाई पहुंचा, तब तक उसे नींद आ गई और वह गहरी नींद में सो गई। भाई को लगा कि बहन काम के बोझ से थक कर सोई है, उसे जगाकर नींद में खलल न डाला जाए। उसने भिटौली की सामग्री बहन के पास रखी। अगले दिन शनिवार होने की वजह से वह परंपरा के अनुसार बहन के घर रुक नहीं सकता था, और आज की तरह के अन्य आवासीय प्रबंध नहीं थे, उसे रात्रि से पहले अपने गांव भी पहुंचना था, इसलिए उसने बहन को प्रणाम किया और घर लौट आया। बाद में जागने पर बहन को जब पता चला कि भाई भिटौली लेकर आया था। इतनी दूर से आने की वजह से वह भूखा भी होगा। मैं सोई रही और मैंने भाई को भूखे ही लौटा दिया। यह सोच-सोच कर वह इतनी दुखी हुई कि ‘भै भूखो-मैं सिती’ यानी भाई भूखा रहा, और मैं सोती रही, कहते हुए उसने प्राण ही त्याग दिए। कहते हैं कि वह बहन अगले जन्म में वह ‘घुघुती’ नाम की पक्षी बनी और हर वर्ष चैत्र माह में ‘भै भूखो-मैं सिती’ की टोर लगाती सुनाई पड़ती है। पहाड़ में घुघुती पक्षी को विवाहिताओं के लिए मायके की याद दिलाने वाला पक्षी भी माना जाता है। 

पिथौरागढ में भिटौली पर 'चैतोल' की परंपरा

कुमाऊं के पिथौरागढ़ जनपद क्षेत्र में चैत्र मास में भिटौली के साथ ही चैतोल पर्व मनाए जाने की एक अन्य परंपरा भी है। चैत्र मास के अन्तिम सप्ताह में मनाये जाने वाले इस त्योहार में पिथौरागढ के समीपवर्ती गांव चहर-चौसर से डोला यानी शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जो कि निकट के 22 गांवों में घूमती है। चैतोल के डोले को भगवान शिव के देवलसमेत अवतार का प्रतीक बताया जाता है, डोला पैदल ही 22 गांवों में स्थित भगवती देवी के थानों यानी मंदिरों में भिटौली के अवसर पर पहुंचता है। मंदिरों में देवता किसी व्यक्ति के शरीर में अवतरित होकर उपस्थित लोगों व भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।

काला महीना 

भिटोला के अलावा कई जगह यह भी प्रथा है की जब किसी लड़की की शादी होते है शादी के पहले साल, लड़के वाले लड़की के घर ओरग देने आते है. यह भी एक प्रकार से भिटोला की तरह है लेकिन फर्क यह है की लड़की वाले चैत्र  के महीना जिसे काला महीना भी माना जाता है और लड़की आपने माता-पिता के घर मे ही रहती है|
शादी के बाद का जो पहला चैत का महीना होता है उसे 'काला महीना' स्थानीय भाषा में 'काव मेंहन' कहा जाता है, लड़की उस महीने के पहले 5 दिन या पूरे महीने अपने मायके में ही रहती है।यह भी प्रचलन है कि शादी होने के बाद के पहले चैत महीने के 5 दिन तक पत्नी को अपने पति के मुख को भी नहीं देखना होता है इसिलिये वे माईके चली जाती हैं।

आज से कुछ दशक पहले जब यातायात व संचार के माध्यम इतने नहीं थे उस समय की महिलाओं के लिये यह परंपरा बहुत महत्वपूर्ण थी। जब साल में एक बार मायके से उनके लिये पारंपरिक पकवानों की पोटली के साथ ही उपहार के तौर पर कपडे आदि आते थे। समय बीतने के साथ-साथ इस परंपरा में कुछ बदलाव आ चुका है। इस रिवाज पर भी औपचारिकता और शहरीकरण ने गहरा प्रभाव छोडा है।  वर्तमान समय में अधिकतर लोग फ़ोन पर बात करके कोरियर से गिफ़्ट या मनीआर्डर/ड्राफ़्ट से अपनी बहनों को रुपये भेज कर औपचारिकता पूरी कर देते हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी प्रेमभाव व पारिवारिक सौहार्द के साथ भिटौली का खास महत्व बना हुआ है।




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Wednesday 15 March 2017

उत्तराखंड में बीजेपी की जीत

उत्तराखंड में बीजेपी की जीत (केसरिया होली)



BJP ने राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से 56 सीटों पर जीत का परचम लहराया है। यह राज्य में अब तक के इतिहास में न केवल BJP, बल्कि किसी भी दल के लिए सबसे बड़ा आंकड़ा है। वहीं, कांग्रेस के खाते में बस 11 सीटें ही आई हैं। सिर्फ 11 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस के लिए सबसे बुरी बात यह है कि खुद मुख्यमंत्री हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा दोनों सीटों से चुनाव हार गए हैं। यही नहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भी चुनाव हार गए। पार्टी की हार को देखते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गवर्नर केके पॉल को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। हालांकि, वह कार्यवाहक सीएम बने रहेंगे।

11 माच 8 बजे उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों के लिए 15 केंद्रों पर मतगणना शुरू हुई। 15 फरवरी को हुए विधानसभा चुनाव में 75 लाख से ज्यादा मतदाताओं में से करीब 68 फीसद ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर 637 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद कर दी थी। इस बार उत्तराखंड में अभी तक का सबसे अधिक मतदान हुआ. इस बार के चुनाव में 68 फीसदी मतदान हुआ है. राज्य में साल 2012 के चुनाव में 67.22 फीसदी मतदान हुआ था. 

जीते उम्मीदवारों की फाइनल सूची 
पुरोला - कांग्रेस - राजकुमार
यमुनोत्री - भाजपा - केदार सिंह रावत
गंगोत्री - भाजपा - गोपाल सिंह रावत
बद्रीनाथ - भाजपा - महेंद्र भट्ट
थराली - भाजपा - मगन लाल शाह
कर्णप्रयाग - भाजपा - सुरेन्द्र सिंह नेगी
केदारनाथ - कांग्रेस - मनोज रावत
रुद्रप्रयाग - भाजपा - भरत चौधरी
घनसाली - भाजपा - शक्तिलाल शाह
देवप्रयाग - भाजपा - विनोद कण्डारी
नरेन्द्रनगर - भाजपा - सुबोध उनियाल
प्रतापनगर - भाजपा - विजय सिंह पंवार
टिहरी - भाजपा - धन सिंह नेगी
धनौल्टी - निर्दलीय - प्रीतम सिंह पंवार
चकराता - कांग्रेस - प्रीतम सिंह
विकासनगर - भाजपा - मुन्ना सिंह चौहान
सहसपुर - भाजपा - सहदेव सिंह पुंडीर
धर्मपुर - भाजपा - विनोद चमोली
रायपुर - भाजपा - उमेश शर्मा
राजपुर रोड - भाजपा - खजानदास
देहरादून कैंट - भाजपा - हरबंस कपूर
मसूरी - भाजपा - गणेश जोशी
डोईवाला - भाजपा - त्रिवेन्द्र सिंह रावत
ऋषिकेश - भाजपा - प्रेमचंद्र अग्रवाल
हरिद्वार - भाजपा - मदन कौशिक
बीएचईएल रानीपुर-  भाजपा - आदेश चौहान
ज्वालापुर - भाजपा - सुरेश राठौर
भगवानपुर - कांग्रेस - ममता राकेश
झबरेडा - भाजपा - देश राज कर्णवाल
पिरान कलियर - कांग्रेस - फुरकान अहमद
रूडकी - भाजपा - प्रदीप बत्रा
खानपुर - भाजपा - कुंवर प्रणव सिंह
मंगलौर - कांग्रेस - काजी मुहम्मद निजामुदीन
लक्सर - भाजपा - संजय गुप्ता
हरिद्वार ग्रामीण - भाजपा - स्वामी यातिस्वरानंद
यमकेश्वर - भाजपा - ऋतु खण्डूरी
पौड़ी - भाजपा - मुकेश कौली
श्रीनगर - भाजपा - डॉ धनसिंह रावत
चौब्बटाखाल - भाजपा - सतपाल महाराज
लैंसडॉन - भाजपा - दिलीप सिंह रावत
कोटद्वार - भाजपा - हरक सिंह रावत
धारचूला - कांग्रेस - हरीश सिंह धामी
डीडीहाट - भाजपा - बिशन सिंह
पिथौरागढ़ - भाजपा - प्रकाश पन्त
गंगोलीहाट - भाजपा - मीना गंगोला
कपकोट - भाजपा - बलवन्त सिंह भौर्याल
बागेश्वर - भाजपा - चंदनराम दास
द्वाराहाट - भाजपा -  महेश नेगी
सल्ट - भाजपा - सुरेन्द्र सिंह जीना
रानीखेत - कांग्रेस - करन महरा
सोमेश्वर - भाजपा - रेखा आर्य
अल्मोड़ा - भाजपा - रघुनाथ सिंह चौहान
जागेश्वर - भाजपा - गोविंद सिंह कुंजवाल
लोहाघाट- पूरन सिंह फर्त्याल
चम्पावत - भाजपा - कैलाश गहतोड़ी
लालकुंआ - भाजपा - नवीन दुम्का
भीमताल - निर्दलीय - राम सिंह
नैनीताल - भाजपा - संजीव आर्य
हल्द्वानी - कांग्रेस - इंदिरा हृदयेश
कालादुंगी - भाजपा - वंशीधर भगत
रामनगर - भाजपा - दीवान सिंह बिष्ट
जसपुर - कांग्रेस - आदेश सिंह चौहान
काशीपुर - भाजपा - हरभजन सिंह चीमा
बाजपुर - भाजपा - यशपाल आर्य
गदरपुर - भाजपा - अरविन्द पाण्डे
रुद्रपुर - भाजपा - राजकुमार ठुकराल
किच्छा - भाजपा - राजेश शुक्ल
सितारगंज - भाजपा - सौरभ बहुगुणा
नानकमत्ता - भाजपा - डॉ प्रेम सिंह राणा 
खटीमा - भाजपा - पुष्कर सिंह धामी